सांड को क्या मालूम
चर गया खेत को कोई चोर
वो आवारा खेत में घूमे
किसान मचाये शोर
ओS ओS ओS .. सांड को क्या मालूम…
खा गया गल्ला खाने दो
रूपये भी खाये, खाने दो
ले गया राशन, ले जाने दो
वोटों का डर है कड़ी टक्कर है
मैं सिमला बना दूंगा
मगर इन चुनावों के बाद
मैं गर्मी मिटा दूंगा
मगर इन चुनावों के बाद
राजा ने घोषित कर दिया - अमृत काल
रानी की ‘अर्थ’पूर्ण मुस्कान बोली - अमृत काल
हमें इतिहास लिखने से कौन रोक सकता है?
गरजा कोतवाल - अमृत काल
भीड मे मास्क नज़र आए थी हसरत उसकी
कब से जारी है नसीहत भी चुनाव आयोग की
किसने जाना है बदलते हुए वोटर का मिज़ाज़
उसको धमकाओ तो देखोगे भी फ़ितरत उसकी
वोटों से छूलो तुम
मेरी जीत अमर कर दो
झांसे में आके मेरे
मेरी सीट अमर कर दो
जब हम लड़ें तो आयोग भी अपना न साथ दे
जब तुम लड़ो तो ईडी लड़े, सी बी आय लड़े
जब हम रुकें तो साथ जुटे बेबसों की भीड़
जब तुम रुको तो पूरी ही सरकार जुट पड़े
शायद चुनाव में हार का ख्याल अब सताया है
इसीलिए पापा ने मेरे, तुम्हें चाय पे बुलाया है
अच्छा S S S…….
कमजोर समझ कर, आयोग को ये, जाल बिछाया है
इसीलिए पापा ने तेरे, मुझे चाय पे बुलाया है
क्यों है ना ? (कड़े तेवर के साथ)
नहीं नहीं सर.....(सफाई की मुद्रा में) आप गलत समझ रहे हैं..
जो तुमको हो पसंद, वही बात कहेंगे
तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे
मिलते ना इश्तेहार तो मर जाते हम कभी के
पूरे हुए हैं आप से, अरमान चैनलों के
भीख में मिले सम्मान का
रखने को झूठा मान
कौवे के लिये जरूरी था
करे गरूड का अपमान
कहावत “नंगे से ऊपरवाला भी डरता है”
पूरी हुई चरितार्थ
जब राजाश्रित नंगेपन के आगे
हुए सभी हतवाक्
छह ग्राम ड्रग की कुश्ती को, देख कबीरा रोय
तीन टनों के खेप की, बात न पूछे कोय
बात न पूछे कोय, मामला पड़ गया ठंढा
राहत मोटे सेठ को, चला बंबई पर डंड़ा
दूरबीन से देखो भाई,
जो न आंख से पड़े दिखाई!
आसमान के तारे लगते
जैसे जुगनू घास में,
नहीं नजर आता है लेकिन
जो घटता है पास में!
नेता कहे किसान से, तू नहीं जाने मोय
ऱॅली का दिन आन दे, फिर रौंदूंगा तोय
नीचे गाड़ी के आयेगा, पिल्ला और किसान
पहला मन को दुख दे, दूजा तो शैतान
खबरदार,
ट्रॅक्टर कुछ ज्यादा ही बिक रहे हैं
मगर ये आलीशान गाडियां नहीं
क्या अर्थव्यवस्था के लिये खतरे की
घंटी तो नहीं
जब तुम कर दी गयी निर्वसन
चुप थी सब आचार्य मंडली
आज तुम्हे मिलता निष्कासन
सभा नयी और नयी है टोली
पर कोई आश्चर्य नहीं है
आज भी चुप आचार्य मंडली