Satish Balram Agnihotri blog - In a Land of Dirt Roads

(आनंद बख़्शीजी के “गिर गया झुमका” से प्रेरित)

(सत्ता के मद में चूर उन अहंकारियों को समर्पित जो करोना में दी गयी सहायता को भीख़ समझ बैठे हैं)

खा गया गल्ला खाने दो
रूपये भी खाये, खाने दो
ले गया राशन, ले जाने दो
वोटों का डर है कड़ी टक्कर है
छोडो बहाना ना ना ना
खा गया गल्ला…..

आहिस्ता आहिस्ता
छेड़ो दंगों की कहानी
क्या करूं माने ना
जनता हुई है सयानी
ऐसे सयाने वोटर नहीं थे
यह इनको क्या हो गया
गया ....

फेल हुआ जादू... होने दो
फ्लॉप हुआ रोड़ शो, होने दो
भीड़ भाग गयी भागने दो
वोटों का डर है कड़ी टक्कर है
छोडो बहाना ना ना ना

किरपा से, आयोग की
बैलेट चुराने दो मुझको
इवीएम के, साये में
घपले कराने दो मुझको
वे मान जाते लेकिन किसानों ने
पहले हल्ला कर दिया
हाय हाय… क्या हुआ?
हो गई मुश्किल, होने दो
उड़ गये तोते उड़ने दो
भीड़ नदारद, होने दो
कुर्सियां खाली, रहने दो

वोटों का डर है कड़ी टक्कर है
छोडो बहाना ना ना ना.....

खा गया गल्ला....

छवि सौजन्य: पिक्साबे

No comments on 'खा गया गल्ला....'

Leave your comment

In reply to Some User
 

You may also be interested in