(पंकज उदास से क्षमायाचना सहित)
भीड मे मास्क नज़र आए थी हसरत उसकी
कब से जारी है नसीहत भी चुनाव आयोग की
किसने जाना है बदलते हुए वोटर का मिज़ाज़
उसको धमकाओ तो देखोगे भी फ़ितरत उसकी
बंद मुठ्ठी की तरह वो कभी खुलता ही नही
गुंडई और घटा देती है कुरबत उसकी
खाली जुमलों से नहीं पेट भरेगा उसका
एक अदद नौकरी पाने की है ख्वाहिश उसकी
एक दिन पूरे इवीएम में नजर आएगी
ठहरे पानी सी ये खामोश हिकारत उसकी
भीड मे मास्क नज़र आए थी हसरत उसकी ...
छवि सौजन्य: पिक्साबे