(बचपन के पाठ्यक्रम और आर सी प्रसाद सिंह से क्षमायाचना सहित)
दूरबीन से देखो भाई,
जो न आंख से पड़े दिखाई!
आसमान के तारे लगते
जैसे जुगनू घास में,
नहीं नजर आता है लेकिन
जो घटता है पास में!
दिखती स्वर्णाभूषित लड़की
स्कूटर पर आधी रात सें
मगर न दिखते नाक के नीचे
बैठे अपराधी घात नें
और दिखे ना चिता पिड़िता की
काली अंधियारी रात में
पुलिस प्रशासन कायम करते
स्मशान शांति इक रात में
बहुत बढ़े गर बात, मुआवजा
दे देंगे खैरात में
अगर बढ़े प्रतिवाद और भी
गुंडों की है फौज बुलाई
दूरबीन से देखो भाई!
अंतर्यामी दूरबीन यह
दूर राज्य का पत्रकार वह
राजद्रोह की साफ है मंशा
आज है उसकी शामत आई,
दूरबीन से देखो भाई..
दूर प्रदेश के गुंडे देखो
दिखते बिल्कुल साफ हैं
अपने बाहुबलियों को भैया
खून साढे तीन माफ हैं
नहीं दिखे गर दूरबीन से
उनका क्या कुसुर है
हैँ वह सादर मंच आमंत्रित
पुलिस से कोसो दूर हैं
इनपर कोई आंख उठाए
किसने इतनी हिम्मत पाई
दूरबीन से देखो भाई!
हिंसाचार दिखे औरों का
दूरबीन गर साथ है
दंगाई पर अपने करते
लट्ठ बजाकर बात हैं
उनकी हिस्ट्री शीट की पूरी
कर ली हमने साफ सफाई
दूरबीन से देखो भाई!
जो न आंख से पड़े दिखाई!
छवि सौजन्य: पिक्साबे