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आज एक और पेड़ धराशायी हो गया – अमरबेल के चंगुल की जकड़ में.

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कलम पीट उनके अब ढ़ोल
कर घोटाले बारी-बारी,
काटी जिन्होंने जेब हमारी,
जो बस गये विदेशों मे जाकर,
करके बोरिया बिस्तर गोल।
कलम, पीट उनके अब ढ़ोल ।

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गिर गयी मूर्ति ... गिरने दो
पुल धंस गया ... धंसने दो
हुआ रेल हादसा ... होने दो

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इन्ही लोगों ने ले लीना मेडलवा मोरा
हो जी हो मेडलवा मोरा…… मेडलवा मोरा …

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खबर मिली की जंगल में सांप नज़र आये हैं। “कौन से जंगल में” संपेरों के सरदार ने कड़ी आवाज़ में पूछा। “जी वह सीमा से सटा जंगल। पड़ोस से ही सांप घुसे हैं लगता है।“

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कल उद्घाटन था आज इक हादसा हुआ
देखते ही देखते पुल ढ़ह गया
कल उद्घाटन था ......

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दीमक ने इस्तीफा दे दिया
पेड़ को खोखला करने के बाद
उसका कार्य हो चुका था सिद्ध
साथी दीमकों ने तालियां बजाईं

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उन्हे शिखर पर पहुंचने की जल्दी थी – सीधी चढाई लंबी और कठिन थी.

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आंसु गॅस भरी हैं किसानों की राहें
कोई उन से कह दें के दिल्ली ना जायें
आंसु गॅस भरी हैं ....

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राजसम्मान बनाम आत्मसम्मान
सतीश अग्निहोत्री
विजयी मुद्रा में
रण से लौटते राजा ने

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आपको शीर्षक पढ़कर आश्चर्य हो, पर अब यह पूछना कि, “क्या लोकतंत्र दरक रहे हैं?” बेमानी हो चुका है, महत्वपूर्ण हो उठा है यह प्रश्न की लोकतंत्र क्यों दरक रहे हैं। गौर करने की बात है कि यह किसी ईक्के दुक्के देश नहीं, दुनिया के कई देशों में हो रहा है जहां दक्षिणपंथी एकनायकतंत्र अपनी जडें जमा रहा है।

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राजा के करिंदे
लायसेंस प्राप्त दरिंदे
महिलाओं पर अत्याचार
इनका जन्मसिद्ध अधिकार

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मत कहो अतिथि ने, आमंत्रण को, किया मना है
यह तो पूरे तंत्र की आलोचना है
यह खबर देखी नहीं पर सुबह से
क्या करोगे, इस खबर को क्या देखना है?

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फिर एक बार जीत गया है बकासुर
एकचक्रा में आज शांति है
स्मशान शांति

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सन्नाटा है क्यूं बरपा एक छलांग ही तो मारी है
देश छोड़के नहीं भागा, गद्दारी नहीं की है ....
सन्नाटा है क्यूं बरपा ...