खबर मिली की जंगल में सांप नज़र आये हैं। “कौन से जंगल में” संपेरों के सरदार ने कड़ी आवाज़ में पूछा। “जी वह सीमा से सटा जंगल। पड़ोस से ही सांप घुसे हैं लगता है।“
They wanted to climb up to the summit – rapidly. The straight path was long and arduous.
उन्हे शिखर पर पहुंचने की जल्दी थी – सीधी चढाई लंबी और कठिन थी.
आपको शीर्षक पढ़कर आश्चर्य हो, पर अब यह पूछना कि, “क्या लोकतंत्र दरक रहे हैं?” बेमानी हो चुका है, महत्वपूर्ण हो उठा है यह प्रश्न की लोकतंत्र क्यों दरक रहे हैं। गौर करने की बात है कि यह किसी ईक्के दुक्के देश नहीं, दुनिया के कई देशों में हो रहा है जहां दक्षिणपंथी एकनायकतंत्र अपनी जडें जमा रहा है।
Mikhail Gorbachev is no more. In his funeral he was denied the full state honour. Frankly speaking, this should not surprise one, notwithstanding the tributes paid to him by the Western leaders.
गोर्बाचोव अब नहीं रहे. उनका अंतिम संस्कार तो हुआ, पर पूरे राजकीय सम्मान के साथ नहीं. और सच देखा जाये तो य़ह आश्चर्य की बात होनी भी नहीं चाहिये. कैसे कोई देश उस व्यक्ति को राजकीय सम्मान दे, जो उसके टूटने का सबब बना. यह सच्चाई गोर्बाचोव की सारी अच्छाईयों पर हावी रहेगी.
Tamil Parliamentarian Kanimozhi has recently been in news a couple of times. Both occasions had a common link – an unwarranted aggressiveness of proponents of Hindi. Both the events highlight the need for restraint and call for introspection.
क्या हम फिर एक बार जीत के मुंह से हार का निवाला छीन लाने में महारत हासिल कर रहे हैं?
खेल में हार जीत तो लगी रहती है पर मिड़िया के चक्कर में अब हम काबिलियत, धीरज और संयम की जगह, दिखावट, उतावलापन, अनावश्यक आक्रामकता और बड़बोलेपन को ज्यादा भाव दे रहे हैं.
कंपनी बहादुर कुछ अधीर से हो उठे थे. ग्लोबलायज़ेशन का जमाना था. धन अब नहीं बटोरें तो कब बटोरें? सारी दुनिया को देखो – हर कोई बहती डिजिटल गंगा में हाथ धो रहा है. अभूतपूर्व पैमाने पर धन संचित कर रहा है. एक हम हैं कि धीमी गति से चल रहे हैं – यह सारा चक्कर इस लोकतंत्र का है. धन अर्जन करने की राह में बस रोड़े ही रोड़े अटकाता है. वह सदाबहार एक्सपर्ट सही कह रहा था जरूरत से ज्यादा हो गया है लोकतंत्र हमारे यहां – वाकई टूss मच. तिसपर यह महामारी – अब ऐसे समय में पैसे बनाने हों तो मैदान साफ चाहिये. तभी तो होगी “इज़ आफ डूइंग बिझनेस”.
अब वह दिन नहीं रहे जब युधिष्ठिर का रथ जमीन से दो अंगुल ऊपर चला करता था. कलियुग में वह न सिर्फ वह धरती से लगकर चलता है बल्कि कीचड में दो अंगुल धंसकर चलता है. उनके रथ को अब कीचड से खासा लगाव है, या यों कहें कि धर्मराज का रथ कीचड में ही खिलता है.
कितनी बड़ी बात थी. शिवजी का धनुष्य बनना. डिजिटल ही सही – बना तो. बनाया था किसीने पिछले 70 सालों में? हाँ हाँ, शिव-धनुष्य 2.0 ऍप की ही बात हो रही है. कैसा धुआंधार प्रचार कर दिया उसका! मानो उस ऍप से ही भस्मासुर मर जाएगा. अब यह दीगर बात है कि असुर को कोई फर्क नही पड़ा – पर आप बीच में मत टोकिए यह सब पूछकर. हमने बता दिया सारे देश को की यह आपको तुरंत खबरदार कर देता है अगर भस्मासुर आस पास कहीं भी हो.
High-Funda was determined. Patiently he got the corpse onto his shoulders from the roof of the main building (MB in IIT-B) and began climbing down the stairs. Vetaal said, “Hey High-Funda! I admire your perseverance, but sometimes I doubt your intentions. I wonder if, after capturing me, you would utilize me for the benefit of others or yourself. But I want to warn you up front. Do not use me for cogging (cogging is an IIT slang meaning cheating in tests) in tests and quizzes. God will punish you if you do that.”
The cunning fox glanced wistfully at the grape vine. He has been eying this vine for a while. However, the clever farmer had trained the vine at a considerable height. He had fenced it carefully too, so that no one can reach the vine and pull it down easily.
चतुर लोमडी ने अंगूर की बेल को हसरत भरी नजर से देखा. इस बेल पर उसकी कई दिनो से निगाह थी. पर किसान ने उसे काफी उंचाई पर रखा था और सहेज कर भी ताकि उसे हाथ बढाकर नीचे न खींचा जा सके.