उन्हे शिखर पर पहुंचने की जल्दी थी – सीधी चढाई लंबी और कठिन थी.
शैतान ने पांसा फेंका “मैं तुम्हें पतलीवाली गली से आगे ले जाउंगा, पर शर्त यह है की तुम्हें रीढ की एक हड्डी गिरवीं रखनी पडेगी ”
“एक हड्डी से क्या आता जाता है” उन्होने सोचा. “अगले पडाव से सीधी चढाई पकडेंगे ”
पहली हड्डी गिरवीं हुई. शैतान ने वादा निभाया. शीघ्र ही वह अगले पडाव पर थे.
“वाह! क्या शीघ्र तरक्की हुई है!” वह अचंभित हुए. पतली गली मुस्करायी.
अब क्या था. हर पडाव पर, यह कहानी अपने आप को दोहराती रही. हर तरक्की पर वह उन साथियों पर एक तुच्छताभरी निगाह डालते रहे जो सीधी, कठिन चढाई चढ रहे थे.
“शिखर पर पहुंचने दो” उन्होंने कहा “फिर दिखाते हैं मेरूदंड क्या होता है.”
पर शिखर के जितने नजदीक वह पहुंचते गये, रीढ की हड्डियां उतनी ही कम होती गयीं.
जब शिखर आया तो उन्होंने खुद को पाया – मेरूदंडविहीन, एक रेंगता हुआ केंचुआ.
और शैतान खुश हुआ!
सीख: पतली गली से पाये गये शिखर का यही अंजाम होता है
[समर्पित – उन तमाम मेरूदंडविहीन उच्चपदस्थों को जो पतली गली से शिखर चढे]
छवि सौजन्य: शटरस्टॉक