Satish Balram Agnihotri blog - In a Land of Dirt Roads

गोर्बाचोव अब नहीं रहे. उनका अंतिम संस्कार तो हुआ, पर पूरे राजकीय सम्मान के साथ नहीं. और सच देखा जाये तो य़ह आश्चर्य की बात होनी भी नहीं चाहिये. कैसे कोई देश उस व्यक्ति को राजकीय सम्मान दे, जो उसके टूटने का सबब बना. यह सच्चाई गोर्बाचोव की सारी अच्छाईयों पर हावी रहेगी.

मुझे कई साल पहले का वाकया याद आ रहा है जब मैं नब्बे के दशक में झिंबाब्वे में एक अंतर्राष्ट्रिय प्रशिक्षण में भाग ले रहा था. प्रशिक्षण में कई देशों के लोग शरीक थे – रुस के भी. एक दिन बातों बातों में मैने गोर्बाचोव, और उनके ग्लासनोस्त, पेरेस्त्रोइका वगैरह की प्रशंसा की. सुनकर रूस का प्रतिनिधि कुछ गंभीर सा हो गया. फिर उसने जो कहा उसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. उसके मुताबिक गोर्बाचोव को रूस में ऐसे व्यक्ति के रूप में ही याद किया जायेगा जिसकी वजह से सोवियत संघराज्य टुटा – बाकी दुनिया चाहे कुछ भी कह ले. यह अलग बात है की सूई की घडियों को अब पीछे नहीं मोड़ा जा सकता. पर गोर्बाचोव की भूमिका की अनदेखी भी नहीं की जा सकती.

मुझे बरबस बिभीषण की याद आ गयी. प्रभु राम के समर्थन में उतरने के बाद भी, अयोध्या तक में बिभीषण का नाम आदर से नहीं, तिरस्कार पूर्वक ही लिया जाता है. यह दीगर बात है की उसे सप्त चिरंजीवियों की सूची में जगह मिली, पर जनमानस में बिभीषण नाम सम्मान से कभी नहीं लिया जाता. गोर्बाचोव ने शायद उतने प्रत्यक्ष तरीके से पश्चिम का साथ न दिया हो पर सोवियत संघ के टूटने नें वह अपनी भूमिका को नकार भी नही सकते. अपने ललाट पर लगा जन्मचिन्ह तो उनकी मृत्यु के बाद विलोप हो गया, पर अपना ही देश तोड़ देने का लांछन शायद ही कभी मिट पाये.

छवि सौजन्य: पिक्साबे

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