Satish Balram Agnihotri blog - In a Land of Dirt Roads

क्या हम फिर एक बार जीत के मुंह से हार का निवाला छीन लाने में महारत हासिल कर रहे हैं?

खेल में हार जीत तो लगी रहती है पर मिड़िया के चक्कर में अब हम काबिलियत, धीरज और संयम की जगह, दिखावट, उतावलापन, अनावश्यक आक्रामकता और बड़बोलेपन को ज्यादा भाव दे रहे हैं.

मीड़िया का क्या है? टी आर पी के चक्कर मे ये स्पर्धा को युद्ध में बदल देंगे और खिलाड़ियों को ग्लेडिएटरों में. फिर हमें रफ्ता रफ़्ता, युद्ध जिज्ञासा से युद्ध पिपासा और युद्ध उन्माद की तरफ ले जाएंगे. और उन्माद की उस बहती गंगा में हर कोई अपने हाथ धोने लगता है और यह वायरस ड्रेसिंग रूम में भी प्रवेश कर जाता है.

यह पहली बार नहीं हुआ है कि इस युद्धोन्माद में हम समय से पहले ही जीत के दावे ठोकने लगते हैं – एक वर्ल्ड कप में तो सीरीज़ शुरु होने से पहले ही जीत का तमगा खुद को पहना चुके थे और फिर सेमी-फायनल तक भी नहीं पहुंच पाये. मीडिया ने अपना दूसरा हमबिस्तर ढूंढ लिया अगले वर्ल्ड कप तक!

यह सब उसी उभरते राजनीतिक ढ़ांचे का प्रतिबिंब है जहां हवस टी आर पी की नहीं सत्ता की है और सत्त्ता के चक्कर मे ये स्पर्धा को युद्ध में बदल देंगे और नागरिकों को ग्लेडिएटरों में. फिर एक एक कर इन ग्लेडिएटरों को रफ्ता रफ़्ता, युद्ध जिज्ञासा से युद्ध पिपासा और युद्ध उन्माद की तरफ ले जाएंगे. यहां भी पर्सेप्शन मैनेजमेंट के नाम पर, काबिलियत, धीरज और संयम की जगह, दिखावट, उतावलापन, अनावश्यक आक्रामकता और बड़बोलेपन को बढ़ावा देंगे.

कम से कम खेलों को तो बख़्श दें !

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