Satish Balram Agnihotri blog - In a Land of Dirt Roads

खबर मिली की जंगल में सांप नज़र आये हैं। “कौन से जंगल में” संपेरों के सरदार ने कड़ी आवाज़ में पूछा। “जी वह सीमा से सटा जंगल। पड़ोस से ही सांप घुसे हैं लगता है।“


“पर यह कैसे हो सकता है?” सरदार ने कहा “हमने तो उस सीमा पर निगरानी लगा रखी है। कंटीले बाड़ हैं। सड़क है, रोशनी है। चौकसी के लिये संपेरे हैं। वह जंगल तो साफ़ घोषित किया जा चुका है। कप्तान को फ़ोन लगाओ।“ कप्तान पर उस जंगल क्षेत्र की सुरक्षा का ज़िम्मा था।


“सारी व्यवस्था तो है सर।“ कप्तान ने धीरज से समझाया। “पर सर सांप वहां से नहीं आते जहां बाड़ है, रोशनी है, सतर्क संपेरे हैं। वे कम्बख़्त तो उन छुटपुट जगहों से आते हैं जहां तार टूटा हो, कभी रोशनी चली गयी हो। इतनी बड़ी सीमा है सर! ऐसे कुछ स्थान होंगे ही। पर आप चिंता न करें। हम इनका सफ़ाया कर ही डालते हैं।“


“हां-हां वह तो ठीक है। पर पहले पता करो कि हैं कितने, कहां छिपे हैं। कहीं बांबियां तो नहीं बना डाली।“


“ख़बर मिली कि कोई सात-आठ सांप ही हैं। पता नहीं कैसे घुस आये। हैं तो खतरनाक विषधर। पर हम भी कोई कम नहीं। इनको इस बार घेरेंगे।“


कैमरेवालों को न जाने कैसे ख़बर मिल जाती है। बस लगा दी “ब्रेकिंग न्यूज़”-फ़लां जंगल में सांप देखे गये हैं! संपेरे उन्हें घेरने की योजना बना चुके हैं। जल्द ही ऑपरेशन होगा। चैनलों के मुख्यालयों ने ख़बर की अहमियत को तुरंत पहचाना। कुछ दिनों से ख़बरों का बाज़ार ठंडा पड़ा हुआ है। न कोई बड़ी घटना, न कोई सनसनी | कोई बच्चा तक बोरवेल में नहीं गिरा है। ऐसा कब तक चलेगा? सारी टी.आर.पी. ख़राब होती है। जनता बड़ी चंचला है। फिर सास-बहू और हंसगुल्लों की तरफ दौड़ जायेगी। नहीं यह मौक़ा भुनाना ज़ुरूरी है।


बस एक दल पहुंचा संपेरों के सरदार के पास। “सर जी, सांपों के बारे में कोई जानकारी दें। कैसे आ गये ? कितने आ गये ? सुना, आप उनके ख़िलाफ़ ऑपरेशन करने जा रहे हैं।“


सरदार ख़ुश हुए। अपनी छवि निखारने का अच्छा मौक़ा मिल रहा था। लगे हाथों प्रेस को ब्रीफ़िंग शुरू कर दी। अपने सूत्रों काहवाला दिया। अपनी ताक़त का बखान किया और भरोसा दिलाया कि सांपों का जल्द ही दबोचा जायेगा।


कैमरेवालों की बांछें खिलीं। यह तो सुनहरा मौक़ा है और सेफ़ भी। एक ने कहा “सर आप इजाज़त दें तो हम इसे अच्छा कवरेज दे सकते हैं।“


‘अरे! यह तो बाज़ी मारने की फ़िराक़ में हैं।' दूसरे ने सोचा। “सर, कवरेज के बारे में मैं कहूंगा कि हममें से कुछ को साथ ले चलें। सैम चाचा के गांव में तो कैमरेवालों को बाक़ायदा गोदी ले चलते हैं।“


“गोदी लेना” सरदार ठठाकर हंसे, ‘एम्बेडेड' के लिये यह जुमला अच्छा है। आप हमारी हिंदी सलाहकार समिति में क्यों नहीं शामिल हो जाते ? एम्बेडेड का सरकारी प्रतिशब्द तो बड़ा टेढ़ा है।“


बाक़ी कैमरेवाले जल-भुन गये! ये बाज़ी न मार ले जाये। उन्होंने प्रतिवाद किया। गोदी लेने काअवसर सबको समान मिलना चाहिये-इसमें पक्षपात नहीं चलेगा। सरदार को 'सर्व-चैनल-समभाव' की नीति अपनानी चाहिये। कुछने यह बात तुनककर कही, कुछ ने ठुनककर, कुछ ने संजीदगी से तो कुछ ने हंसकर और समझदारों ने बांयीं आंख दबाकर।


कप्तान ने सर पीट लिया। अरे यह कोई पिकनिक नहीं है और कितनों को ले जाऊं। संपेरों से ज़ियादा तो कैमरेवाले ही हो जायेंगे। पर क्या करता आदेश जो था....


सो साहब संपेरों का दल ग़ौल बांधकर चला जंगल में मय साज़ो-सामान के। कैमरेवाले उत्सुक, रोमांचित। देखते रहो न जाने कब सांप नज़र आ जाये।


पर जंगल का अपना क़रायदा होता है। जैसे अभयारण्य में बाघ के दर्शन फ़रमाइश पर नहीं होते, यहां भी सांपों के दर्शन नहीं हुए।


कप्तान भी परेशान। अरे कुछ तो नतीजे दिखाने होंगे। कैमरे की ख़ातिर ही सही। उनके चतुर मातहतों ने परिस्थिति को समझा। कहीं हांका किया, कहीं गोली चलायी। भगदड़ में कहीं से जवाबी गोली की आवाज़ आयी। काफ़ी भाग-दौड़ हुई। पर दिन के अंत में नतीजा सिफ़र।


“हम लोग ना-उम्मीद नहीं है।“ संपेरों के प्रवक्ता ने विश्वास दिलाया। “दिन के अंत में हमें एक केंचुल मिला है। ज़ाहिर है, केंचुल है तो सांप भी होंगे और एक दो संपेरों ने बांबियां भी देखी हैं। लगता है सांप स्थानीय मदद से बांबियां बनवा चुके हैं ताकि छुपने का बंदोबस्त रहे।“


बस तड़ातड़ ख़बरें आ गयी ‘नहीं बचेंगे सांप’ ‘केंचुल की एक्सक्लूसिव तस्वीरे-सिर्फ़ हमारे चैनल पर’ ‘कई दिनों से बांबियों का निर्माण बदस्तूर जारी-यानी ख़ुफ़िया विभाग अपने काम में असफल रहा।‘ कइयों ने बांबियों की पुरानी फ़ाइल तस्वीरें भी छाप दीं-'अश्वत्थामा हतो' की तर्ज़ पर। कौन पूछता है कि तस्वीरें ताज़ा है या पुरानी।


ऑपरेशन का दूसरा दिन भी वैसा ही रहा। अब केंचुलें कितनी बार दिखायें? और बांबी की तस्वीर के पीछे व्याकुल हो रहे कैमरेवालों को कैसे कोई समझाये।


तय हुआ कि चीलों के दस्ते को बुलाया जाये। इतना फैला हुआ जंगल। संपेरे कहां पैदल छानते रहें और ये गोदी लिये कैमरेवाले! ये ना होते तो आराम से जंगल को खंगाला जा सकता था लेकिन नतीजे जल्दी चाहियें तो चीलों को ही बुलाना होगा। वे हवा में ऊपर से सांप या बांबी जो भी देख पायें, बता दें। फिर आगे का हम संभाल लेंगे। हां, कैमरे पर चीलें भाव तो खा ही जायेंगी-वाहवाही भी पायेंगी। पर क्या करें। जिसका जैसा भाग्य।


चीलों का दलपति मुस्कुराया। अब बेटा हमारी अहमियत समझ आयी। ये संपेरे अपने-आप को न जाने क्या समझते हैं, यह नहीं सोचते कि सारा काम थल पर थोड़े ही होता है नभ में तो हम ही विचरण करते हैं। ख़ैर अब मदद मांगी है तो हमारा फ़र्ज़ बनता है।


कैमरेवाले और भी ख़ुश। आकाश में उड़ते हुए चीलों का नज़ारा तो और भी लुभावना था। कुछ एक तिकड़मी बंदे तो चीलों की चोंच में बंध गये। ऊपर से तस्वीरें लीं। जो नहीं जुगाड़ कर पाये हाथ से निकलती टी.आर.पी. को सोच हाथ मलते रहे।


पर साहब चील-दल को भी निराशा ही हाथ लगी। घना जंगल, तिस पर ख़राब मौसम, ऊपर से कुहासा और सांप तो खुले में घूमेंगे नहीं। बांबियां भी अच्छी तरह से छिपाकर ही बनायी होंगी। सो नभचरों के हाथ भी निराशा लगी।


अब लोग बेसतब्र होने लगे। दो-तीन दिनों से सांपों की ख़बर आ रही थी। दर्शकों को मुठभेड़ों का इंतज़ार था। दो-चार ढेर हुए सांप तो दिखते, ध्वस्त होती बांबी तो दिखती। यहां तो सब एकदम फुस्स।


“मेरी मानें सर, तो मोरों के दस्ते को भी आज़मा लिया जाये। मोर तो जंगल के अंदर विचरण करेगा। सांपों को पकड़ने में भी सहायक और पेड़ों के नीचे बनी बांबियों को भी पहचान पायेगा। ऐसे घने जंगल में चीलों की बजाय मोरों का दस्ता ज़ियादा कारगर होगा।“


अनमनेपन से सरदार ने कप्तान की बात मानी। चलो मोरों को भी आज़मा लिया जाये। पर कहीं पर उनके दिमाग़ में एक शंका जन्म लेने लगी थी-सांप थे भी या नहीं। पर अब पीछे हटने का प्रश्न नहीं था। केंचुले दिखा चुके थे। बांबियां बनाने में मदद के संदेह पर कुछ लोग गिरफ़्तार भी हो चुके थे। चलो मोरों को कुछ कामयाबी मिले तो बात बने।


फिर दनादन ख़बरें। चीलों की असफलता की। सरकारी दावों की खुलती क़लई की। पर साथ ही मोरों की तस्वीरें। मोरों की प्रशंसा। वर्षा में नाचते मोरों पर विशेष कार्यक्रम। अब नये हीरो थे मोर!


पर जनाब, अब जंगल में मोर क्या नाचा यह किसने देखा? सारे सांपों को खोजने की क़वायद जारी रही। यहां लकीर पीटी वहां लकीर पीटी। पर नतीज़ा सिफ़र। जो बांबियां दिखीं भी वह सांपों की थीं ही नहीं, चींटियों की थीं। हताश संपेरों ने उन्हीं में से दस-बीस तोड़ डालीं। मोर भी हाथ हिलाते वापिस आये, संपेरे भी। कैमरे वाले ख़ैर कैमरे हिलाते वापस आये। एक ही निष्कर्ष कोई सांप नहीं मिले।


समस्या गंभीर थी। अब टी.आर.पी. का क्या होगा ? पड़ोसी हंसेगा सो अलग। ऊपर से जवाब तलब होगा और फिर ये कैमरेवाले। ये कब किसी के सगे हुए हैं? अब शुरू कर देंगे टीका-टिप्पणी, नुक्ताचीनी। पता नहीं सरदार ने यह आफ़त क्यों मोल ली। अब वही जाने पहचाने तीर इनके तरकश से निकलेंगे-संपेरों का ऑपरेशन नाकामयाब, दावों की पोल खुली, सुरक्षा व्यवस्था की फिर एक बार किरकिरी वगैरह-वग़ैरह। ये कम्बख़्त सर पर सवार नहीं होते तो कहीं से दो-चार सांपों के शव, टूटी हुई बांबियां, विषधरों के दांत वगैरह का जुगाड़ तो हो ही जाता। यह लाइव कवरेज तो जी का जंजाल है।


संपेरों का सरदार भी मंझा हुआ खिलाड़ी था। उसने कप्तान की सारी भड़ास को शांति से सुना और कहा, “इतने चिंतित हो कप्तान। तुमने तो अच्छा काम, किया है। जंगल घूम आये, ऑपरेशन, किया। चीलों और मोरों के दस्ते से, तालमेल निभाया। अब रही बात कैमरेवालों की तो वह मैं संभालता हूं। तुम ब्रीफ़िंग की व्यवस्था करो। माइक-वाइक, काजू और....”


समझदार को इशारा काफ़ी था। सभा शुरू हुई। सरदार कैमरेवालों से मुख़ातिब। प्रश्नों की बौछार हुई- “क्या यह ख़ुफ़िया तंत्र की कमज़ोरी उजागर नहीं करती ? क्या यह आपकी विफलता नहीं है ? इतने बड़े जंगल में आप कोई सांप नहीं पकड़ पाये। बांबियों की बात भी ग़लत निकली।“ कोलाहल-सा मचा।


सरदार ने धीरज से सबको सुना। फिर धीर-गंभीर स्वर में बोले, “भाइयो। पहले तो मैं आपके धैर्य और सहयोग के लिये आपको धन्यवाद देता हूं। पर यह भी याद दिलाना चाहता हूं कि हमारे साथ चिपकने...मेरा मतलब है कि जुड़ने का निर्णय आपका अपना था। हालांकि हमारी गतिविधियां थोड़ी बाधित हुईं पर हमने उसमें उच्च नहीं किया। पर जो सही बात है वो यह है कि हम तो बस अपनी नियमित क़वायद कर रहे थे कि आप साहेबान जुट गये।“


“क़वायद ? कैसी क़वायद ?” समवेत स्वर से प्रश्न गूंजा।


“वही, लकीर पीटने की क़वायद।“ सरदार ने खुलासा किया। सांप-सांप कहकर लकीर पीटने की क़वायद।


सबको जैसे सांप सूंघ गया। भौंचक्के चेहरों का मज़ा लेते हुए कप्तान ने शांति भंग की- “लीजिये साहेबान। काजू खाइये।.....”

छवि सौजन्य: पिक्साबे

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