चतुर लोमडी ने अंगूर की बेल को हसरत भरी नजर से देखा. इस बेल पर उसकी कई दिनो से निगाह थी. पर किसान ने उसे काफी उंचाई पर रखा था और सहेज कर भी ताकि उसे हाथ बढाकर नीचे न खींचा जा सके.
पर बेल आज थोडी नीची नजर आ रही थी. इधर कई दिनों से सबकुछ ठीक नहीं चल रहा था. अंगूरों का आपसी संतुलन बिगड़ सा रहा था. कुछ अंगूर जरा ज्यादा ही भारी हो रहे थे, तो बेल का झुक जाना लाजिमी था.
शायद यह मेरी छलांग की पहुंच में हो – लोमडी ने सोचा. उसे बेलें गिराने में महारत हासिल हो चुकी थी. अभी परसों ही तो उसने एक और किसान की बेल को चुपचाप छलांग लगाकर नीचे खींच लिया था और रसीले अंगूर हथिया लिये थे. दरअसल, लोमडी अंगूर की हर बेल पर अपना नियंत्रण रखना चाहती थी.
बेल वाकई झुकी हुई लग रही थी. लोमडी ने छलांग लगाई. पर बेल तक नहीं पहुंच पायी. उसने दोबारा प्रयत्न किया – गहरी सांस ली, लंबा रन अप लिया, पैर सिकोडे और पूरी ताकत से छलांग लगाई. पर यह क्या? बेल थोडी और उंचाई पर चली गयी – लोमडी की पहुंच से बाहर. शायद चतुर किसान ने उसे समय रहते ही उपर की ओर खींच लिया था.
लोमडी को झेंपने की आदत नहीं थी. उसने चारों तरफ देखा और अपने साथियों से कहा “अरे, मैने सोचा ये अंगूर तो पके हुए हैं पर यह तो खट्टे निकले. चलो कोई बात नहीं, इनके पकने का इंतजार करते हैं. “
देखें, अंगूर की बेल कबतक खैर मनाती है!
— सतीश अग्निहोत्री
(दृष्टव्य:- इसका हाल के घटनाक्रम से कोई संबंध नहीं है)
छवि सौजन्य: पिक्साबे