(दिनकर जी से क्षमायाचना सहित)
कलम पीट उनके अब ढ़ोल
कर घोटाले बारी-बारी,
काटी जिन्होंने जेब हमारी,
जो बस गये विदेशों मे जाकर,
करके बोरिया बिस्तर गोल।
कलम, पीट उनके अब ढ़ोल ।
अर्धसत्य की कर बौछारें,
विरोधियों पर छापे ड़ारे
जिनके सत्ता उन्माद से सहमी,
जनता रही अभी तक डोल।
कलम, पीट उनके अब ढ़ोल ।
जो अगणित नवयुवक हमारे,
किया जिन्हे सत्ता ने किनारे,
राह तकत बुझ गए रोजगार की,
नहीं कहे विद्रोह के बोल।
पीट उनके बलिदान के ढ़ोल ।
अंधा मिड़िया ड़र का मारा,
सत्ता चरण चाटनेवारा,
साखी उसकी लाचारी के,
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल।
कलम पीट उनके अब ढ़ोल ।
छवि सौजन्य: कृत्रिम बुद्धिमत्ता