[स्वर्गीय कैफ़ी आजमी जी से क्षमायाचना सहित]
ज़रा सी खांसी जो होती है तो दिल सोचता है
कहीं ये वो तो नहीं, कहीं ये वो तो नहीं
ज़रा सी खांसी होती है …
घुस के सीने में कोई जगह बना लेता है
हर दवाई को बता जैसे धता देता है
है उसी की ये सदा, है उसी की ये अदा
कहीं ये वो तो नहीं …
शक्ल फिरती रहे निगाहों में मास्कवाली सी
वरना नस-नस में मचल जायेगी चिंगारी सी
छू गई जिस्म तेरा गर किसी दामन की हवा
कहीं ये वो तो नहीं …
लेके इक डोज़ दवाई का कोई बैठा है
अगला कब आएगा कोई न बता सकता है
अब प्रभु की है कृपा, अब प्रभु की ही कृपा
कहीं ये वो तो नहीं …
ज़रा सी खांसी जो होती है तो दिल सोचता है
कहीं ये वो तो नहीं, कहीं ये वो तो नहीं
छवि सौजन्य: पिक्साबे