सत्ता पर काबिज हो चुका बकासुर
पर इसमें उस बेचारे का क्या ही कसुर
दोषी हैं एकचक्रा नगर के अधिवासी
जिन्होंने अध्यक्ष उसे बनाया हजुर
अब सत्ता का शिलाजित तो
भूख जरूर बढ़ाता है
बकासुर अब रोज एक
नयी हरिणी मंगवाता है
क्या एकचक्रा के नागरिक
प्रतिरोध नहीं करते?
इस ढ़ीठ निरंकुशता का
विरोध नहीं करते?
नहीं, एकचक्रा में अब कोई
नागरिक नहीं बचा है
जो दिखती है, वह तंत्र के आगे
बेबस खड़ी प्रजा है
नागरिक बस प्रश्न पूछकर
करते असुरों को परेशान
प्रजा होती है आज्ञाकारी
करती है उनका जयगान
पर क्यों न करे?
अब वह हो गयी है समझदार
सीख लिया है उसने नित सहना
असुरों के अत्याचार
वह असुर जो पिड़िता का
घर उजाड़ सकता है
या वह जो उसे रात अंधेरे
फूंक देने का दम रखता है
और वह भी जिसे बलात्कार के बाद
माला पहनायी जाती है
या वह जिसके जेल में भी
तंत्र चरण छूता है
और वह जो सांसें जांचने के बहाने
हरिणी का हर अंग-अंग छू सकता है
या वह जो बोरे की तरह घसीटने के बाद
गोली मार देने का दम रखता है
ऐसे असुरों के आगे बेबस प्रजा का
अब यही बचा है दर्शन
कि करे लोक का अंतिम संस्कार
और तंत्र के आगे – आत्म समर्पण
छवि सौजन्य: पिक्साबे