कहां तो तय था पंद्रह लाख हरेक घर के लिये
कहां दवा भी मयस्सर नहीं शहर के लिये
यहां अस्पतालो के साये में मौत बैठी है
चलो यहाँ से कहीं दूसरे शहर के लिये
रहें तो अपने घरों में कैद आक्सीजन के बगैर
मरें तो सेठ के अस्पताल में आक्सीजन को लिये
दवा न सही बस दवा का ख्वाब सही
कोई हसीन सा जुमला हो मुर्दाघर के लिये
न हो श्मशान तो बाहर ही फूंक देंगे शव
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस लहर के लिये
वो मुतमईन हैं के सत्ता नहीं बदल सकती
मैं बेकरार हूं आक्रोश में असर के लिए
छवि सौजन्य: पिक्साबे