भूल वही की थी तुमने तब
वही धृष्टता की है अब भी
तोड लाज की बेडी तुमने
गर्दन अपनी फिर उपर की
खतरनाक तुम्हारे तेवर
बदनामी का नहीं तुम्हे डर
तोड न पाये वे सब मिलकर
अडिग तुम्हारा आज मनोबल
विक्षत तन से उपर उठकर
तुमने सत्ता को ललकारा
एक तरफ सत्ता का पशुबल
एक तरफ स्वाभिमान तुम्हारा
एक तरफ नग्नता तुम्हारी
एक नंगापन ढीठ़ हमारा
परंपरा को चुनौती दो तुम
सहन नहीं हम कर पायेंगे
तुम्हे किताबों की दुनियां से
निष्कासित हम कर जायेंगे.
यही विजय है पितृसत्ता की
यही पराभव आज तुम्हारा
खबरदार गर किसी द्रौपदी
ने फिर सत्ता को ललकारा
हंसी द्रौपदी मूढ कापुरूष
जीत तुम्हारी है अस्थायी
नहीं बुझेगी आसानी से
ज्वाला जो मैने सुलगाई
मुझे किताबों से निष्कासित
कर हासिल क्या हो जायेगा
हरेक दमन का कदम तुम्हारा
नये सवाल उठायेगा
महज राख से ढकने से क्या
चिंगारी बुझ जायेगी
दमन तंत्र से प्रश्न पूछने
पुनः द्रौपदी आयेगी
छवि सौजन्य: पिक्साबे