Satish Balram Agnihotri blog - In a Land of Dirt Roads

मेरी जींस से झांकते अंगों को घूरती हुई
उनकी फटी सी आंखें
और जो मुझपर फेंकना चाहते थे मन ही मन
वह उनकी अक्ल पर पडे हुए पत्थर
तिसपर सत्ता का चढ़ा हुआ अहंकार
जिसने झांका, मेरे मन के नहीं
जींस के अंदर
और नाप डाला मेरे सारे व्यक्तित्व को
अपनी कुत्सा के पैमाने पर
और चला डाले सारे विषाक्त बाण
मन की बात को जुबान पर लाकर
अब उठी है बात
विषधर की उपरति की
पर मेरे जींस से झांकते अंगों को पता है
कि चाहे जितना गरल निकाल ले
केंचुल छोड दे
विषधर रहेगा आखिर
विषधर ही !

छवि सौजन्य: पिक्साबे

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