सफेद चादरें भी लज्जित हैं आज
न जाने उन्होंने कितने कुकर्मों को ढ़क दिया
लज्जित हैं दीवारों के ताजा रंग
जिन्होंने कितनी बदबूओं को रातों रात दबा दिया
स्तब्ध हैं वे सारे कार्टून के पन्ने
जिन्हें उन्होंने मातम के सारे माहौल पर रख दिया
और हताश खड़ा है पानी का वह कूलर जिससे
एक बूंद आंसू तो क्या, पानी तक नहीं टपका
लज्जित है वह कालीन भी जिसने
खून के सारे धब्बों को नजरों से ओझल कर दिया
पर नहीं लज्जित हैं वह भारी जूते
जो उस कालीन को रौंदते चले
ना ही लज्जित वह ठेकेदार जिसे
रसूख के दम पर ठेके मिले
न वह सफेदपोश जिसने
मालिक की हांक पर मौत का ठेका दे दिया
ना लज्जित वह ढ़ीठ चाटुकार जिसने
मौत का सारा दोष मृतकों के ही सर मढ़ दिया
और अपनी क्रूर पर लाचार गिरावट का
एक नया कीर्तीमान गढ़ दिया
अब होंगी गिरफ्तारियां, और दर्ज होंगे मुकदमे
दोषियों के नहीं, वह जिनके विरोध के स्वर उभरें
अब सलाखों के पीछे होंगी, सफेद चादरें, ताजा रंग
कार्टून के पन्ने, कूलर और कालीन
पर व्यवस्था की बरकरार रहेगी ढ़ीठ साज सज्जा
क्योंकि ‘सत्तातुराणां न भयं न लज्जा’!
छवि सौजन्य: पिक्साबे