क्या कहा? तुमपर हुआ बलात्कार! जरूर तुम्ही ने कुछ किया होगा
अपनी किसी अशालीनता से ‘बेचारे’ मर्द को उकसाया होगा
कपड़े जरूर तंग थे तुम्हारे, संस्कारों से दूर विदेशियत के मारे
अच्छा ss तुमने पहन रखी थी साड़ी?
जरूर होगी नाभिदर्शना, और पीठ उघाड़ने वाली
हाँ, देख पाता हूँ मैं, कि नहीं हो तुम शहरी
पर कस्बा देहात से हो, तो रहना था गूंगी और बहरी
जरूरत क्या है मोबाइल पर इतना बतियाने की?
और बिना किसी मतलब के, खेत खलिहान जाने की
गयी भी गर, तो हुआ वो सह लिया होता
परिवार गांव और प्रदेश को बदनाम न किया होता!
क्या कहा तुमने? खेत नहीं, मंदिर जा रही थी
क्यों तुम्हें असमय भक्ति सता रही थी?
चलो, असमय नहीं था, पर क्यों न कोई था साथ
अकेली क्यों गयी, जभी तो चढी उनके हाथ
दोषी तुम हो, जो जाकर की उनकी नीयत खराब
और तुर्रा यह कि रपट दोगी पुजारीजी के खिलाफ!
तुम्हारे जैसों का तो बस यही है इलाज
कि चलो, शव फूँक दिया जाये, औचक रातों रात
“ऐसा जुल्म न करो” सहमी पीडिता गिडगिडाई
और कानून की वह मूरख, देने लगी दुहाई
नासमझी पर उसकी, कानून रोया, व्यवस्था मुस्करायी
औ’ इत्मीनान से पीडिता का, अंतिम संस्कार कर आई
नये युग ने गढ़ा नया नारा
समरथ को नहीं दोष गुसाईं
(हर बेशर्म प्रवक्ता को शर्म के साथ समर्पित)
छवि सौजन्य: पिक्साबे