Satish Balram Agnihotri blog - In a Land of Dirt Roads

मेरी सांसों की जांच के लिये
वे पिता-तुल्य हाथ, बार-बार
मेरे स्तनों को छूते
मेरे पेट को स्पर्श करते,
और मेरी जांघें टटोलते रहे

धृतराष्ट्र अंधा तो था ही
नीरव भी हो गया
गांधारी ने आंखों पर एक और पट्टी
कसकर बांध ली
दुशासन ठहाके लगाता रहा
बिके हुए आचार्य गण मौन रहे
हां, एक युयुत्सु ने मेरे पक्ष में
बोलने का साहस किया

अब मैं नाथवती अनाथवत
बाट जोहूंगी, जबतक
ना हो कीचक का वध
जयद्रथ के केशों का मूंडन औ'
दुशासन का वक्ष विदारण

मेरी सांसें चलती ही रहेंगी तबतक
तुम जितना चाहो
उन्हें जांचते रहो

छवि सौजन्य: पिक्साबे

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